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एक ऐसी दरगाह जहां ज़हरीले बिच्छू इंसान को बना लेते हैं अपना दोस्त || इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा || नहीं काटते है यहाँ सांप और बिच्छू

इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा
इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा


क्या कभी आपने हाथों में बिच्छू को रखने की कल्पना की है? नहीं न, क्योंकि बिच्छू के काटते ही कुछ घंटो में मौत होना तय है। लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी जगह के बारे में जहां हज़ारों जहरीले बिच्छू होने के बाद भी वह आपको नहीं काटते।

इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा
इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा


एक ऐसी दरगाह, जहां सैकड़ों बिच्छू घूमते हैं लेकिन हैरानी की बात यह है कि वो बिच्छू लोगों को काटते नहीं हैं बल्कि उनको अपना दोस्त बना लेते हैं. हम बात कर रहे हैं यूपी के अमरोहा का हज़रत सैयद शाह साहब की दरगाह की. यह दरगाह तकरीबन 800 साल पुरानी है दरगाह में सैकड़ों बिच्छू हर वक्त यहां वहां घूमते रहते हैं . यहां के बिच्छू लोगों को ना काटते हैं और ना परेशान करते हैं.

इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा
इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा


यूपी के अमरोहा में वाक़े हजरत सैयद शाह साहब की दरगाह को लोग बिच्छू वाले मजार के नाम से भी जानते हैं । मज़ार की तारीख़ 800 साल पुरानी है लेकिन हैरानी की बात ये है कि वहां मौजूद सैकड़ों ज़हरीले बिच्छु इंसान को अपना दोस्त बना लेते है ।मर्द हों या ख़्वातीन..बच्चे हों या बज़ुर्ग बिच्छू हर किसी से दोस्त बन जाते हैं।यहां कदम कदम पर लाखों बिच्छू रेंगते हैं

मज़ार के कोने कोने में चारों तरफ बिच्छुओं की मौजूदगी किसी से छिपी नहीं रहती ।और ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह बिच्छू ज़हरीले नहीं हैं माना तो यह भी जाता है कि दरगाह के अंदर ये बिच्छू नहीं काटते लेकिन बाहर निकलते ही काट लेते हैं.दरअसल मान्यता यह है कि कोई इंसान इन बिच्छुओं को हफ्ते या दस दिन के लिए बाबा से इजाज़त लेकर दरगाह से कहीं बाहर ले जाता है तो वो उसे नहीं काटते। लेकिन तय मुद्दत पूरी होते ही वे उसे तुरंत काट लेते हैं।

इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा
इस दरगाह में है बिच्छू और सापों का है बसेरा


लेकिन आज तक कभी भी यहां आए किसी भी इंसान को बिच्छू ने डंक नहीं मारा है...मज़ार पर आने वाले अक़ीदतमंद बताते हैं कि मजार की आबोहवा ही ऐसी है कि यहां आने पर किसी के भी ज़ेहन में मौजूद मंफ़ी और बुरे ख्यालात खत्म हो जाते हैं ।ये दरगाह गंगा-जमुनी तहज़ीब की भी मिसाल है...जहां हिंदू-मुस्लिम तबक़े के लोग दूर-दूर से मुरादें मांगने आते हैं ।

दरगाह के जमीन, छतों, दीवारों और आस-पास के बगीचे के पेड़ों की जड़ों के पास से मिट्टी हटाने पर ढेरों बिच्छू निकलते हैं ।कहा जाता है करीब 800 साल पहले ईरान से सैयद सरबुद्दीन सहायवलायत ने अमरोहा में आकर डेरा डाला था। यहां पहले से रह रहे बाबा शाहनसुरूद्दीन ने इस पर एतराज जताया और एक कटोरे में पानी भरकर उनके पास भेजा। बिच्छू वाले बाबा ने कटोरे के ऊपर एक फूल रखकर उसे वापस कर दिया और कहा हम इस शहर में ऐसे रहेंगे जैसे कटोरे में पानी के ऊपर फूल। मज़ार में बिच्छुओं की बदली आदत को कोई हजरत सैयद शाह का चमत्कार बताता है। तो कोई कुदरत का करिश्मा लेकिन जो भी हो ये वाक्या ऐसा है जिसपर यकीन आसानी से नहीं होता लेकिन आंखों देखा बात को नज़र अंदाज़ भी नहीं किया जा सकता



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