हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं में ज्यादातर हमने पुरुष पात्रों के बारे में ही सुना है। चाहे रामायण की बात हो या फिर महाभारत काल की, पुरुष पात्रों का गुणगान हमनें किसी महायोद्धा या अवतार के रुप में ही सुना है। लेकिन इन पौरोणिक कथाओं में ऐसी कई महिलाएं पात्र थी जिनकी भूमिका के वर्णन के बिना ये कथाएं अधूरी रह जाती है। ये महिलाएं न सिर्फ इन कथाओं की पात्र बल्कि इनके जीवन के पीछे कई उद्देश्य छिपे थे, जो आज भी हर महिलाओं को अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करता है। रामायण में कई रोचक कहानियों का समावेश किया गया है उनमे से एक हैं अहिल्या उद्धार की कहानी जो आज के समय से जोडकर देखिये तब आप को समझ में आएगा की इतिहास में भी बलात्कारियों को युगों युगों तक सजा का भुक्तं करना पड़ा फिर वो देव ही क्यू न हों |
वैसे तो अहिल्या के बारे रामायण में वर्णन आता है कि भगवान राम के पांव लगाते ही वो पत्थर से इंसान बन गई थी। लेकिन वो पत्थर कैसी बनी और अहिल्या कौन?
माता अहिल्या जिन्हें ब्रम्हा जी ने स्वयं बनाया था |इनकी काया बहुत सुंदर थी | इन्हें वरदान था की इनका योवन सदा बना रहेगा | इनकी सुन्दरता के सामने स्वर्ग की अप्सराये भी कुछ नही थीं |इन्हें पाने की सभी देवताओं की इच्छा थी | यह ब्रम्हा जी के मानस पुत्री थी |
भगवान ब्रह्मा ने अहिल्या की उत्पति उच्च गुणों के साथ की थी। लेकिन वो ऐसे गुणवान व्यक्ति की भी तलाश कर रहे थे। जो उनके बाद अहिल्या की देखभाल कर सकें। इसलिए, उन्होंने महर्षि गौतम को चुना, जिनके पास बहुत सारी बुद्धिमत्ता और ज्ञान थी। इसलिए उन्होंने महर्षि गौतम को अहिल्या के बड़े होने पर अपने साथ ले जाने के लिए कहा था।
जब अहिल्या बढ़ी हुई थी, महर्षि उन्हें लेने के लिए भगवान ब्रह्मा के पास लेने के लिए पहुंचे तब ये बात का निर्णय लिया गया कि अहिल्या की शादी किसी साधु से ही होगी।
तब भगवान ब्रह्मा ने एक शर्त रखी कि जो भी सबसे पहली दुनिया का एक चक्कर लगाकर आयेगा उसके साथ ब्रह्मा जी अहिल्या की शादी करवा देंगे। सभी देवता और ऋषिवर दुनिया का चक्कर लगाने निकल जाते है। तभी एक घटना घटती है अहिल्या ऋषि गौतम को कामधेनु गाय के प्रसव कराने में मदद करते हुए देखती है। वो उस गाय के प्रति उनका समपर्ण और प्रेम देखकर उनसे शादी करने की इच्छा जताती है।
इस तरह अहिल्या और महर्षि गौतम की शादी हो जाती है लेकिन सभी ऋषि वर और देवता इस शादी से बुरी तरह जल जाते है। लेकिन कहते हैं कि इंद्र देवता को अहिल्या बहुत पसंद थी। ब्रह्मा जी ने जब इस अहिल्या को बनाया था, तभी से इंद्र अहिल्या के पीछे पागल थे। किन्तु इंद्र देवता को यह स्त्री जब नहीं मिली तो उन्हों अपनी कामवासना शांत करने के लिए एक जाल रचा था और उस जाल में वह खुद फँस गये थे।
और एक दिन वो प्रेम्वासना की कामना के साथ अहिल्या से मिलने प्रथ्वी लोक आये । लेकिन गोतम ऋषि की होते ये संभव नही था तब इंद्र और चन्द्र देव ने एक यक्ति निकली । महर्षि गौतम ब्रम्ह काल में स्नान करते थे और इसे बात का फायदा उठाते हुए इंद्र और चन्द्र देव ने अपने मायावी विद्या का प्रयोग किया । चंदे देव ने अर्ध रात्रि को मुर्गे की बांग दी जिससे महर्षि गोतम भ्रमित हो गए और अर्ध रात्रि को ब्रम्ह काल समझ कर गंगा तट स्नान के लिये निकल पड़े ।
महर्षि गोतम के जाते ही इंद्र ने महर्षि गौतम का वेश धारण कार कुटिया में प्रवेश किया और चन्द्र ने बहार रह कर कुटिया की पहरेदारी की दूसरी तरफ जब महर्षि गौतम गंगा घाट पहुंचे तो उन्हें समय पर संदेह हुआ तब गंगा माता ने प्रकट होकर महर्षि गौतम को बताया की यह इंद्र का रचा माया जाल है वो अपनी गलत नियत लिए अहिल्या के साथ कु कृत्य की लालसा से प्रथ्वी लोक पर आया है | यह सुनते ही महर्षि गौतम क्रोध में भर गए और तेजी से कुटिया की तरफ लोटे उन्होंने चन्द्र को पहरेदारी करते देखा तो उसे शाप दिया की उसपर हमेशा राहू की द्रष्टि बनी रहेगी और उसपर एक कमंडल मारा | तब ही से चन्द्र पर दाग हो गया है |
उधर इंद्र को भी महर्षि गौतम के आने का आभास हो गया |जब गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने ही वेश में अपने आश्रम से निकलते हुए देखा तब वह सारी बात समझ गए। महर्षि गौतम ने इंद्र को भी शाप दिया क्रोध से भरकर गौतम ऋषि ने इन्द्र से कहा ‘मूर्ख, तूने मेरी पत्नी का स्त्रीत्व भंग किया है। उसकी योनि को पाने की इच्छा मात्र के लिए तूने इतना बड़ा अपराध कर दिया। यदि तुझे स्त्री योनि को पाने की इतनी ही लालसा है तो मैं तुझे श्राप देता हूं कि अभी इसी समय तेरे पूरे शरीर पर हजार योनियां उत्पन्न हो जाएगी'। और साथ में ये भी कहा की कभी इंद्र को सम्मान की द्रष्टि से नही देखा जायेगा और न ही उसकी पूजा होगी और इसी कारण आज तक इंद्र को सम्मान प्राप्त नही हुआ |
कुछ ही पलों में श्राप का प्रभाव इन्द्र के शरीर पर पड़ने लगा और उनके पूरे शरीर पर स्त्री योनियां निकल आई। ये देखकर इन्द्र आत्मग्लानिता से भर उठे। उन्होंने हाथ जोड़कर गौतम ऋषि से श्राप मुक्ति की प्रार्थना की। ऋषि ने इन्द्र पर दया करते हुए हजार योनियों को हजार आंखों में बदल दिया।
क्रोधावेग में उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। गलती न होने के कारण भी उन्होंने ऋषि का श्राप स्वीकार करके पूरे जीवन पत्थर बनकर गुजार दिया। जब ऋषि का गुस्सा शांत हुआ और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने अहिल्या को आर्शीवाद दिया कि भगवान श्रीराम के चरणों को छूकर वो इस श्राप से मुक्त हो जाएंगी।
इन्द्र को ‘देवराज' की उपाधि देने के साथ ही उन्हें देवताओं का राजा भी माना जाता है लेकिन उनकी पूजा एक भगवान के तौर पर नहीं की जाती। इन्द्र द्वारा ऐसे ही अपराधों के कारण उन्हें दूसरे देवताओं की तुलना में ज्यादा आदर- सत्कार नहीं दिया जाता
गुरू विश्वामित्र के साथ विचरण करते हुए राम जी गौतम ऋषि के सुनसान पड़े आश्रम पहुंचे। जहां उन्हें अहिल्या रूपी पत्थर दिखा। विश्वामित्र ने राम जी को सारी घटना बताई, जिसे सुनकर राम जी ने अहिल्या का उद्धार किया।