चंगेज खान मंगोल का शासक था | जिसने मंगोल साम्राज्य की स्थापना की थी | चंगेज खान अपनी संगठन शक्ति बर्बरता और साम्राज्य विस्तार के लिए प्रसि) था | चंगेज खान ने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट क्र दिया था | चंगेज खान बौ) धर्म को मनता था मंगोलियो लोग चंगेज खान का नाम बड़ी इज्जत से लेते थे | चंगेज खान बड़ा ही क्रूर और अत्याचारी राजा था |
चंगेज खान का प्रारभिक जीवन
Changej Khan Of History |
चंगेज खान की शादी
चंगेज खान की शादी 12 वर्ष की उम्र में बोरते के साथ कर दी गई थी बाद में चंगेज खान की पत्नी का अपहरण कर लिया गया था अपनी पत्नी को मुक्त करने के लिये चंगेज खान को युद्ध और लड़ाई लड़नी पड़ी | उसके एक खास दोस्त का नाम बोघूरचू था। उसका सगा भाई जमूका भी उसके साथ ही रहता था। जमूका हालांकि प्रारंभ में उसका मित्र था, बाद में वो शत्रु बन गया। कबीलों की लड़ाई में उसके पिता की हत्या कर दी गई। बाद में चंगेज खान ने जमूका को हरा दिया और फिर शुरू हुआ उसके द्वारा सभी कबीलों के अपने अधीन करने का अभियान। इसके बाद मंगोलिया से लेकर यूरोप तथा एशिया के कई हिस्सों पर उसने आक्रमण किया तथा वहां अपना साम्राज्य स्थापित किया।तिमुचिन से चंगेज बनने तक का सफ़र
चंगेज खान का वास्तविक नाम तिमुचिन था चंगेज खान मुस्लिम शासक नही था | तिमुचिन तब कोई 11 बरस का रहा होगा जब उसके पिता येसुजई बगातुर को तर्तारों ने ज़हर देकर मार दिया | तिमुचिन जान गया था कि अगर उसे और उसकी मां को जिंदा रहना है तो बाकी की मंगोल ख़ानाबदोश जातियों से गठजोड़ करने होंगे.तिमुचिन ने जम्कुआ और केरियित नाम की जनजाति के तोघ्रिल लड़ाकों से खून का नाता निकाल लिया था. जब मेर्कित जनजाति के लोगों ने तिमुचिन की मंगेतर बोरते का अपहरण कर लिया था तो इन्हीं दोस्तों की मदद से उसने बोरते को छुड़ाया था.
जवान होने पर उसने कई और जनजातियों को इकट्ठा किया और तर्तारों का विनाश कर अपने पिता की मौत का बदला लिया. तिमुचिन की ताकत अब बढ़ने लगी थी. ये देखकर जम्कुआ और केरियित उसके दुश्मन बन गए. ताकत की चाह ने उन्हें तिमुचिन के हाथों मरवा डाला और फिर 1206 में मंगोलों की सभा कुरिल्तई ने उसे अपना सरदार या कैगन घोषित कर दिया.
मंगोलों के इतिहास पर सबसे मौलिक क़िताब ‘अ सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ मंगोल’ में इस घटना का ज़िक्र कुछ यूं है, ‘और फिर, जब तंबुओं में रहने वाली सारी जनजातियां एक ताकत के साए तले आ गयीं, उस साल ओनोंन नदी के किनारे सफेद झंडे के नीचे उन्होंने चंगेज यानी तिमुचिन को कैगन के ख़िताब से नवाज़ दिया.’ यही कैगन बिगड़कर बाद में ‘खान’ लफ्ज़ बन गया. और इस तरह तिमुचिन चंगेज खान कहलाया.
चंगेज के राजा बनने की उम्र को लेकर इतिहासकारों में कुछ मतभेद है. जवाहरलाल नेहरू उसे तब 51 वर्ष का मानते हैं. माइक एडवर्ड्स उसे 40 का. ज़्यादा मत नेहरू के अनुमान के साथ ही हैं. 51 की उम्र वह होती है जब आदमी जीवन में कुछ स्थिरता और शांति की इच्छा रखता है. यह उम्र सेनापति बनने की तो कतई नहीं हो सकती.
सिकंदर तो 32 की उम्र में महान होकर इस दुनिया से विदा भी हो गया था. जब अकबर गद्दीनशीं हुआ था तो वह महज़ 12 साल का था. अशोक ने भी कलिंग पर कम उम्र में ही चढ़ाई कर डाली थी. 51 की उम्र में चंगेज ने दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया जो सिर्फ इंग्लैंड की महारानी के साम्राज्य से थोड़ा ही कम था.
चंगेज की दुनिया पर फ़तेह
नेहरु ‘ग्लिंप्सेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में लिखते हैं, ‘ये इत्तेफ़ाक ही रहा कि हिंदुस्तान इस कहर से बच गया पर आप कल्पना कर सकते हैं कि ये सब यूरेशिया के लोगों के लिए किसी प्राकृतिक आपदा जैसा रहा होगा. मानो जैसे कोई ज्वालामुखी फट गया हो या जैसे कोई भूकंप आया हो, जिसके सामने इंसान कुछ नहीं कर सकता.’
चंगेज के घोड़े पूरे एशिया और यूरोप के ज़्यादातर भाग को रौं
द रहे थे. सबसे पहले वह मंगोल के पूर्व में गया जहां उनसे चीन के किन साम्राज्य को खत्म कर डाला. फिर उसने कोरिया जीत लिया. दक्षिण के सुंग साम्राज्य, जिसने उसकी इन जंगों में मदद की थी, को भी उसने तहस-नहस कर डाला. बाद में चंगेज खान ने तिब्बत के तन्गुतों को भी हरा दिया.
यूरोप कूच
मंगोलिया के पश्चिम में उस वक़्त कारा खितई नाम का एक राज्य चंगेज खान के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा था. लिहाज़ा, उसने पश्चिम का रुख कर लिया और यहीं से पश्चिम एशिया की तकदीर हमेशा के लिए बदल गयी. कारा खितई को हरा देने के बाद उसने ख्वारिज्म की ओर रुख किया. पहले-पहल चंगेज ने अपने कुछ व्यापारी और व्यापारी के भेस में अपने जासूस ख्वारिज्म के मुहम्मद शाह के दरबार में भेजे. ये सब सिल्क रूट से गए थे. ख्वारिज्म साम्राज्य के ओर्त्रार नामक प्रांत के गवर्नर को कुछ शक हुआ. लिहाज़ा उसने उन सब व्यापारियों और उनके भेस में छिपे जासूसों की हत्या कर माल लूट लिया.
जब चंगेज को यह मालूम हुआ तो उसने भुनभुनाकर अपने राजदूत को शाह के पास भेजा और कहा कि ओर्त्रार के गवर्नर को उसके हवाले किया जाए. शाह ने उस उसके राजदूत का सर काट कर चंगेज को पेश कर दिया. उसे ये नागवार था. पर जैसा एक सेनापति को बर्ताव करना चाहिए उसने वही किया. उसने कोई हड़बड़ी नहीं की पर बदला लेने का मन ज़रूर बना लिया.
चंगेज खान
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1219 की गर्मियों में एक एेतिहासिक जंग लड़ी गयी. रॉबर्ट ग्रीन ने अपनी किताब ‘जंग की तैंतीस रणनीतियां’ में इस जंग का बड़ी तफसील से बयान किया है कि कैसे चंगेज ने रणनीति के तहत पहले एक जंग शाह से हारी. ख्वारिज्म के पूर्वी हिस्से में हुई जीत के शाह को अपनी 40 हज़ार की सेना पर यकीन हो गया. बस यही चंगेज चाहता था. शाह को उसके पलटकर फिर पूर्व में ही आने की उम्मीद थी. इस बार चंगेज ने उत्तर की तरफ से हमला बोलकर ओर्तार के उसी गवर्नर को मार दिया जिसे वह अपने हवाले चाह रहा था. बाद में हुई लड़ाई में चंगेज खान शाह को हैरत में डालते हुए समरकंद के पश्चिम में बुखारा के किले के सामने आ गया. शाह को कतई उम्मीद नहीं थी कि ऐसा करने में वह बीच में पड़ने वाले किज़िल कुम रेगिस्तान को पार कर लेगा.
बुखारा को तहस-नहस कर डाला गया. साथ में बल्ख, निशापुर, हेरात और समरकंद बर्बाद की ऐसी दास्तां के निशान बन गए कि यहां के इतिहासकारों ने चंगेज खान को ‘शैतान की औलाद’ तक कह डाला.
जैसा कि हमने पहले कहा कि इतिहास में नायकों और घटनाओं को रेफरेन्स पॉइंट या परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है. इसी समरकंद से बाद में तैमूर लंग निकला जिसने हिंदुस्तान और यूरोप में भयंकर तबाही मचाई. वही इतिहासकार जो चंगेज को कोसते हैं, तैमूर को एक महान सुल्तान की उपाधि देते हैं.
तैमुर तो खैर महान नहीं था पर इसी समरकंद से एक और नायक निकला जिसे दुनिया ने बाबर के नाम से जाना और जिसके वंशज अकबर को अकबर महान की उपाधि से नवाजा गया. बाबर की रगों में चंगेजी और तैमूरी खून था. उसकी मां चंगेजों की तरफ से थी और बाप तैमूरों के खानदान से. बाबर खुद को तैमूरी कहलवाना पसंद करता था. पर यह अजीब इत्तेफ़ाक है कि उसके वंशजों को हिंदुस्तान में मुगल कहा गया. मुगल लफ्ज़ मंगोल का अपभ्रंश है.
चंगेज की सफलता के कारण
रॉबर्ट ग्रीन चंगेज की सफलता का कारण उसकी सेना की चपलता, उसके शानदार घुड़सवार और हथियार के तौर पर आग के गोलों के इस्तेमाल को मानते हैं. ग्रीन ख्वारिज्म पर चंगेज की फ़तेह को चीनी जंग की ‘धीरे-धीरे-तेज-तेज’ रणनीति का अंजाम मानते हैं. वहीं नेहरू ने उसके अनुशासन के साथ-साथ उसकी हलकी और तेजी से काम करने वाली उसकी सेना को इस कामयाबी की वजह माना है. चंगेज का लाव लश्कर हल्का ही होता था.
रूस के इतिहासकार वस्सिली येन ने चंगेज खान के जीवन पर काफ़ी शोध किया है. अपनी किताब ‘चंगेज खान : शैतान का बेटा’ में लिखा है कि चंगेज की सेना वजन कम ढोती थी और खाने के लिए वह थके हुए या बेकार हो गए घोड़ों को मारकर खा जाती थी.
नेहरू के मुताबिक चंगेज की काबिलियत इस बात से भी परिभाषित होती है कि उसने एक से एक शानदार सेनापतियों की श्रंखला बनायीं. इसमें जोची, जेबे और बाद में चंगेज के बेटे चगताई आदि का नाम प्रमुख है.
माइक एडवर्ड्स के मुताबिक़ चंगेज खान किसी राज्य को जीतकर उसकी सेना को अपने में मिलाने का प्रयास करता जससे उसके पास हमेशा ताज़ा सैनिकों की भरमार रहती. माइक के मुताबिक़ चंगेज की सेना का वर्गीकरण बेहद शानदार था. प्रत्येक अर्वान में दस, जून्न में सौ और तुमैन में दस हज़ार सैनिक होते थे.
चंगेज खान की बर्बरता
चंगेज खान जहां भी गया वहां उसने तबाही का ऐसा मंज़र खड़ा किया कि बाद के राजा उसके ख़िलाफ़ सिर नहीं उठा सकते थे. वह ख़ानाबदोश ज़िन्दगी का रहनुमा था. उसे शहरों और उनकी जिंदगी से कोई लगाव न था. इसलिए उसने शहर के शहर तबाह कर डाले.ओर्त्रार के गवर्नर की आंखों में उसने सीसा और चांदी पिघला कर डलवा दी थी. माइक एडवर्ड्स सीक्रेट ऑफ़ मंगोल लाइफ के हवाले से लिखते हैं कि चंगेज ने एक बार खुद कहा था, ‘आदमी का सबसे बड़ा सौभाग्य है दुश्मन का पीछा करना, उसे हरा देना, उसकी संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेना, उसकी औरतों को रोते हुए छोड़ देना और फिर औरतों के जिस्म का...’ कुछ मुसलमान इतिहासकार मानते हैं कि चंगेज की सेना ने निशापुर में कुत्ते और बिल्लियों तक को मरवा डाला था. चंगेज खान के बारे में कहा जाता है कि वह कुत्तों से बहुत डरता था.
चंगेज खान का मजहब
चंगेज का मजहबों के प्रति रवैया एक जैसा था. उसकी सेना में बौद्ध, मुसलमान सब धर्मों को मानने वाले थे. उसने किसी एक महज़ब को नहीं अपनाया. नेहरू लिखते हैं कि जब मंगोलों की ताक़त बेहद बढ़ गयी थी तो वेटिकेन के पादरियों ने उन्हें ईसाई बनाने की कोशिश की. चंगेज नाम के पीछे ‘खान’ का मतलब यह नहीं था कि वह मुसलमान था. चंगेज शमिनिस्म धर्म का अनुयायी था. यह धर्म मंगोलिया, साइबेरिया आदि इलाकों में प्रचलित है.वस्सिली येन या कमलेश्वर जैसे महान साहित्यकार यही समझाते आये हैं कि किसी एक ख़ास मज़हब की इंसानियत के प्रति दुश्मनी नहीं है और यह बर्बरता मज़हबी नहीं बल्कि सियासी है. शायद यही कारण है कि मंगोलियाई चंगेज खान को शैतान की औलाद नहीं बल्कि एक महान राजा मानते हैं.
चंगेज खान की मृत्यु
1227 में चंगेज खान की मौत हुई थी. उसके आखिरी शब्द थे, ‘मैं पूरी दुनिया फतह करना चाहता था. लेकिन एक उम्र इसके लिए बहुत कम है.’ उसकी इच्छा थी कि मरने के बाद उसे कहां दफनाया गया, यह किसी को पता न चले. इसलिए उसे दफनाने गए सारे सैनिकों को मार दिया गया था. आज भी चंगेज खान की कब्र ढूंढने की कोशिशें जारी हैं.