भारत का एकमात्र ऐसा किला जो आज भी है बिना नींव के खड़ा
राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित यह किला चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है। यही नहीं यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी नींव नहीं है। गागरोन का किला अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है। सैकड़ों साल पहले जब यहां के शासक अचलदास खींची मालवा के शासक होशंग शाह से हार गए थे तो यहां की राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए जौहर (जिंदा जला दिया) कर दिया था। सैकड़ों की तादाद में महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था। इस शानदार धरोहर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में भी शामिल किया है।
किले की बनावट
किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर। इतिहासकारों के अनुसार, इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। पहले इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए किया जाता था। किले के अंदर गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा महत्पवूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं।
गागरोन किले को राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में बनवाया था। यहां 14 युद्ध और 2 जौहर हुए हैं। यह उत्तरी भारत का एकमात्र ऐसा किला है जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है, इस कारण इसे जलदुर्ग के नाम से भी पुकारा जाता है। यह ऐसा किला है जिसके तीन परकोटे हैं।
आंचल दास की वीरता का पलंग Anchal Das's bed of valor
गागरोन के इस किले पर जीत हासिल करने के पश्चात होशंग शाह अचलदास की वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अचलदास के रहने वाले स्थान और उसकी वस्तुओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचाय।
वर्षों तक यहां पर मुस्लिम राजाओं का राज रहा लेकिन कभी किसी राजा ने उनके श्यान कक्ष मैं उपस्थित पलंग को हटाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई और यह पलंग सन 1950 तक यहां था।
अचल दास जी के इस पलंग के बारे में ऐसी मान्यता थी । कि इस पलंग पर वह आते थे। और आराम करते थे। एवं इस श्यान कक्ष से उनके हुक्का पीने की आवाजें आया करती थी।मरणोपरांत भी राजा इस महल मैं आते थे। और विश्राम करते थे।
पलंग के बिस्तर पर मिलते थे ₹5 रुपए
gagron fort jhalawar |
यहां ऐसा कहा जाता है। कि राजा के बिस्तर को सुधारने एवं साफ सफाई की व्यवस्था का कार्य एक नाई करता था। और उसे प्रतिदिन ₹5 मिलते थे। परंतु एक दिन उसने यह बात लोगों को बता दी।
और उसी दिन से यह घटना बंद हो गई। लेकिन बिस्तर की यह व्यवस्था चलती रही जब तक यह कोटा की रियासत रही लेकिन कोटा की विरासत को राजस्थान में विलय करने के उपरांत यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
मौत का किला Fort of death
इसके किले में दो प्रवेश द्वार हैं। एक प्रवेशद्वार नदी की ओर खुलता है। और दूसरा प्रवेश द्वार पहाड़ी के रास्ते पर है। इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए उपयोग किया जाता था। इसलिए इस किले को मौत का किला भी कहा जाता है।
नहीं उठा सके तलवार
gagron fort jhalawar |
खींची राजा की भारी तलवार को चोरों ने चुराने का प्रयत्न किया लेकिन वह अपनी इस योजना में असफल हो गए। खींची राजा की भारी तलवार को चोर रास्ते में छोड़कर भाग गए।
उन्हेल जैन मंदिर
झालावाड़ के दक्षिण भाग में शहर से 150 किमी दूर स्थित उन्हेल जैन मंदिर है। जो भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। यहां विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति तकरीबन 1000 साल पुरानी है। यहां घूमने के साथ-साथ कम पैसों में रहने और खाने का भी लुत्फ उठाया जा सकता है।
झालावाड़ के दक्षिण भाग में शहर से 150 किमी दूर स्थित उन्हेल जैन मंदिर है। जो भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। यहां विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति तकरीबन 1000 साल पुरानी है। यहां घूमने के साथ-साथ कम पैसों में रहने और खाने का भी लुत्फ उठाया जा सकता है।
बौद्ध गुफा और स्तूप
बौद्ध गुफा कोल्वी गांव में स्थित है जो झालावाड़ के खास आकर्षणों में से एक है। गुफाओं के अंदर की शोभा बढ़ाते हैं भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति और नक्काशीदार स्तूप। झालावाड़ से 90 किमी दूर इस जगह आकर आप भारतीय कला का अद्भुत नमूना देख सकते हैं। टूरिस्ट यहां आसपास की और भी दूसरे गांव विनायक और हटियागौर को एक्सप्लोर कर सकते हैं।
दलहनपुर
दलहनपुर झालावाड़ से 54 किमी दूर छापी नदी के किनारे स्थित है। जो खासतौर से स्तंभो, नक्काशीदार मूर्तियों और तोरण के लिए मशहूर है।
द्वारकाधीश मंदिर
यहां 1776 ई में गोमती सागर झील के किनारे पर बना द्वारकाधीश मंदिर भी बहुत ही खूबसूरत घूमने वाली जगह है।
हर्बल गॉर्डन
द्वारकाधीश के नज़दीक ही है हर्बल
गॉर्डन, जहां आपको कई तरह के हर्बल और मेडिकल प्लान्ट जैसे वरूण, लक्ष्मण, शतावरी, स्तीविया, रूद्राक्ष और सिंदूर देखने को मिलेंगे।
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चंद्रभाग मंदिर
चंद्रभाग नदी के किनारे बना हुआ खूबसूरत चंद्रभाग मंदिर के नक्काशीदार स्तंभ देखने वाली जगह है। स्तंभ के अलावा यहां स्थापित मूर्ति भी कला का अद्भुत नमूना पेश करती हैं।
ये राजस्थान के सबसे पुराने म्यूज़ियम्स में से एक है। जहां आप दुर्लभ पेंटिंग्स, हस्तलेखों और मूर्तियों को देख सकते हैं। शहर के बीचों-बीच बसा ये म्यूज़ियम टूरिस्टों के आकर्षण का केंद्र है।