हम्पी के प्राचीन मंदिरों का रहस्य
विरुपाक्ष मंदिर घूमने जाने के लिए सर्दियों का मौसम (अक्टूबर से फरवरी) सबसे अच्छा समय होता है, इस दौरान हम्पी का मौसम काफी सुखद और यात्रा के लिए अनुकूल होता है। विरुपाक्ष मंदिर के अधिकांश प्रमुख उत्सव इन्ही महीनो में मनाये जाते है जो इसे विरुपाक्ष मंदिर की यात्रा के लिए और अधिक उपयुक्त बनाता है। गर्मियों में हम्पी का मौसम काफी आद्र और गर्म होता है इसीलिए इस दौरान हम आपको विरुपाक्ष मंदिर की यात्रा से बचने की सलाह देगें।
वीरुपाक्ष मंदिर भारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है तथा इस मन्दिर का संबंध इतिहास प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य से है। यह मंदिर बंगलौर से 350 किलोमीटर की दूरी पर भारत के कर्नाटक राज्य, हम्पी में स्थित है। यह मंदिर हम्पी के ऐतिहासिक स्मारकों के समूह का एक मुख्य हिस्सा है, विशेषकर पट्टडकल में स्थित स्मारकों के समूह में है। एक मंदिर नाम यूनेस्को, विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। यह मंदिर भगवान विरुपक्ष और उनकी पत्नी देवी पंपा को समर्पित है विरुपक्ष, भगवान शिव का ही एक रूप है। इस मंदिर के पास छोटे-छोटे और मंदिर जोकि अन्य देवी देवताओं को समर्पित है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिला, तिरुपति से करीब 100 किलोमीटर दूर नलगानापल्ली नामक एक गांव में वीरूक्षिनी अम्मा मंदिर (मां की देवी) भी है।
यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी, तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित है। विम्पाक्ष मंदिर, हम्पी में तीर्थ यात्रा का मुख्य केंद्र है, और सदियों से सबसे पवित्र अभयारण्य माना जाता है। आसपास के खंडहरों में यह मंदिर अब भी बरकरार है और अभी भी मंदिर में भगवान शिव की पूजा कि जाती है।
हम्पी के प्राचीन मंदिरों का रहस्य |
माना जाता है हम्पी ही रामायण काल का किष्किंधा है। इस मंदिर का इतिहास प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य से जुड़ा है। यहां भगवान शिव के विरुपाक्ष रूप की पूजा की जाती है। ये मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बना हुआ है। 500 साल पहले इस मंदिर का गोपुरम बना था। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की कहानी रावण और भगवान शिव से जुड़ी हुई है।
यह मंदिर भगवान विरुपाक्ष और उनकी पत्नी देवी पंपा को समर्पित है। विरुपाक्ष, भगवान शिव का ही एक रूप है। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यहां का शिवलिंग है जो दक्षिण की ओर झुका हुआ है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक रावण जब शिवजी के दिए हुए शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तो यहां पर रुका था। उसने इस जगह एक बूढ़े आदमी को शिवलिंग पकड़ने के लिए दिया था। उस बूढ़े आदमी ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया, तब से वह शिवलिंग यहीं जम गया और लाख कोशिशों के बाद भी हिलाया नहीं जा सका।
मंदिर की दीवारों पर उस प्रसंग के चित्र बने हुए हैं जिसमें रावण शिव से पुन: शिवलिंग को उठाने की प्रार्थना कर रहे हैं और भगवान शिव इंकार कर देते हैं। यहां अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नृसिंह की 6.7 मीटर ऊंची मूर्ति है। किवदंती है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और क्षीरसागर वापस लौट गए।