Kinner Kailash Mahadev |
हिमालय की बर्फीली चोटियों में कई देव स्थान हैं। इनकी धार्मिक मान्यताएं भी बहुत अधिक है। ऐसा ही एक पर्वत है, किन्नर कैलाश। किन्नर कैलाश हिमाचल के किन्नौर जिले में स्थित है। ये शिवलिंग 79 फिट ऊंचा है। इसके आस-पास बर्फीले पहाड़ों की चोटियां हैं। जो इसकी खूबसूरती की में चार चांद लगाते हैं।
अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण किन्नर कैलाश शिवलिंग चारों ओर से बादलों से घिरा रहता है। ये हिमाचल के दुर्गम स्थान पर स्थित है, इसलिए यहां पर ज्यादा लोग दर्शन के लिए नहीं आते हैं। किन्नर कैलाश का प्राकृतिक सौंदर्य मंत्र मुग्ध कर देने वाला है।
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तिब्बत स्थित मानसरोवर कैलाश के बाद किन्नर कैलाश को ही दूसरा बडा कैलाश पर्वत माना जाता है। सावन का महीना शुरू होते ही हिमाचल की खतरनाक कही जाने वाली किन्नर कैलाश यात्रा शुरू हो जाती है। इस यात्रा के बारे में कहा जाता है कि इस यात्रा को अपने जीवन काल में आम आदमी एक ही बार करने की हिम्मत जुटा पाता है। इस स्थान को भगवान शिव शीतकालीन प्रवास स्थल माना जाता है। किन्नर कैलाश सदियों से हिंदू व बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है। इस यात्रा के लिए देश भर से लाखों भक्त किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए आते हैं। किन्नर कैलाश पर प्राकृतिक रूप से उगने वाले ब्रह्म कमल के हजारों पौधे देखे जा सकते हैं।
किन्नर कैलाश शिवलिंग का आकार त्रिशूल जैसा लगता है। किन्नर कैलाश पार्वती कुंड के काफी नजदीक है जिस वजह से भी इसकी मान्यता बहुत अधिक है।
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भगवान शिव की तपोस्थली किन्नौर के बौद्ध लोगों और हिंदू भक्तों की आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश समुद्र तल से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग की ऊंचाई 40 फीट और चौड़ाई 16 फीट है। हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त जुलाई व अगस्त में जंगल व खतरनाक दुर्गम मार्ग से हो कर किन्नर कैलाश पहुचते हैं। किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तों को जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 स्थित पोवारी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गाव से हो कर जाना पडता है। गणेश पार्क से करीब पाच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए तो मुराद पूरी होती है। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब 24 घटे की कठिन राह पार कर किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करने पहुचते हैं। वापस आते समय भक्त अपने साथ ब्रह्मा कमल और औषधीय फूल प्रसाद के रूप में लाते हैं।
1993 से पहले इस स्थान पर आम लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध था। 1993 में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया, जो 24000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां 40 फीट ऊंचे शिवलिंग हैं। यह हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए पूजनीय स्थल है। इस शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा करने की इच्छा लिए हुए भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं।
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पौराणिक महत्व:
किन्नर कैलाश के बारे में अनेक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों के विचार में महाभारत काल में इस कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, जहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी। यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने बनवास काल का अन्तिम समय यहीं पर गुजारा था। किन्नर कैलाश को वाणासुर का कैलाश भी कहा जाता है। क्योंकि वाणासुरशोणित पुरनगरी का शासक था जो कि इसी क्षेत्र में पडती थी। कुछ विद्वान रामपुर बुशैहररियासत की गर्मियों की राजधानी सराहन को शोणितपुरनगरी करार देते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि किन्नर कैलाश के आगोश में ही भगवान कृष्ण के पोते अनिरुध का विवाह ऊषा से हुआ था।
माना जाता है कि यहां पर जो पार्वती कुंड स्थित है वह कुंड देवी पार्वती ने खुद बनाया था। यहां पर पूरी तेयारी के साथ आना चाहिए क्योंकि यहां पर ट्रेक करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए किसी स्थानीय गाइड को अपने साथ ले सकते हैं।
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रंग बदलता है शिवलिंग:
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हिमाचल का बदरीनाथ:
किन्नर कैलाश को हिमाचल का बदरीनाथ भी कहा जाता है और इसे रॉक कैसलके नाम से भी जाना जाता है। इस शिवलिंगकी परिक्रमा करना बडे साहस और जोखिम का कार्य है। कई शिव भक्त जोखिम उठाते हुए स्वयं को रस्सियों से बांध कर यह परिक्रमा पूरी करते हैं। पूरे पर्वत का चक्कर लगाने में एक सप्ताह से दस दिन का समय लगता है। ऐसी मान्यता भी है कि किन्नर कैलाश की यात्रा से मनोकामनाएं तो पूरी होती ही हैं। यहां से दो किलोमीटर दूर रेंगरिकटुगमा में एक बौद्ध मंदिर है। यहां लोग मृत आत्माओं की शान्ति के लिए दीप जलाते हैं। यह मंदिर बौद्ध व हिन्दू धर्म का संगम भी है। भगवान बुद्ध की अनेक छोटी-बडी मूर्तियों के बीच दुर्गा मां की भव्य मूर्ति भी स्थित है।